जीवन में कैसे होगी आनंद की प्राप्ति |
आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं, पर इच्छाएं नहीं।
इसलिए मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परिश्रम करना ही चाहिए। आवश्यकता का अर्थ है, जीवन रक्षा के लिए अनिवार्य साधन। जैसे रोटी कपड़ा मकान इत्यादि।
यदि मनुष्य पुरुषार्थी हो, तो ईश्वर उसकी सभी आवश्यकताएं पूरी कर ही देता है। क्योंकि ईश्वर बहुत दयालु और न्यायकारी है। अब मनुष्य को चाहिए कि वह ईश्वर पर विश्वास करे, और अपनी मेहनत पर भी भरोसा करे, तो उसकी आवश्यकताएं निश्चित रूप से पूरी हो जाती हैं।
परंतु भूल वहां से आरंभ होती है जब व्यक्ति बड़ी-बड़ी इच्छाएं करना शुरू कर देता है। इच्छाओं की समाप्ति तो कभी हो नहीं सकती। बड़े-बड़े मनु आदि ऋषि-मुनियों ने ऐसी बात कही है, कि जैसे अग्नि में घी डालने से अग्नि बढ़ती जाती है, शांत नहीं होती। इसी प्रकार से इच्छाओं को पूरा करने से इच्छाएं बढ़ती जाती हैं, वे कभी भी समाप्त नहीं होती।
एक और ऋषि ने कहा है कि जैसे समुद्र के किनारे पर खड़े हुए व्यक्ति को समुद्र का एक किनारा तो दिखता है, परंतु दूर तक देखने पर भी दूसरा किनारा नहीं दिखता। ऐसे ही इच्छाओं का आरंभ तो दिखता है, परंतु समुद्र के समान उनका अंत नहीं दिखता।
इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखे। और आवश्यकताएं पूरी हो जाने पर ईश्वर का धन्यवाद करे, कि हे ईश्वर ! आपकी कृपा से हमारा जीवन बहुत अच्छा आनंदित एवं सुरक्षित रूप से चल रहा है। आपने हमें बहुत दिया है। जितना भी दिया है, इतना भी सबको नहीं मिल पाता। हम संसार में लाखों व्यक्तियों से अच्छे, ऊंचे स्तर पर जी रहे हैं। आपका बहुत बहुत आभार है