51+ Kumar Vishwas Shayari in Hindi | कुमार विश्वास शायरी इन हिंदी

Dr. Kumar Vishwas Famous Shayari Hindi
Dr. Kumar Vishwas

Top Dr. Kumar Vishwas Shayari Hindi  कुमार विश्वास का जन्म 10 फरवरी 1 9 70 को पिलखुवा, ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था|


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(1) पनाहों में जो आया हो, उस पर वार क्या करना जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर से अधिकार क्या करना मोहब्बत का मज़ा तो, डूबने की कशमकश में है. जो हो मालूम गहरायी, तो दरिया पार क्या करना.

(2) मेरा जो भी तर्जुबा है, तुम्हे बतला रहा हूँ मैं कोई लब छु गया था तब, की अब तक गा रहा हूँ मैं बिछुड़ के तुम से अब कैसे, जिया जाये बिना तडपे जो मैं खुद ही नहीं समझा, वही समझा रहा हु मैं

(3) भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा

(4) ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ ज़ख्मों का मरहम है अजब सी कशमकश है,रोज़ जीने, रोज़ मरने में मुक्कमल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है

(5) जागती रहना तुझे तुझसे चुरा ले जाऊंगा  हो के क़दमों पे निछावर फूल ने बुत से कहा  ख़ाक में मिल कर भी मैं ख़ुशबू बचा ले जाऊंगा  कौन सी शय मुझ को पहुंचाएगी तेरे शहर तक  ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊंगा  कोशिशें मुझ को मिटाने की भले हों कामयाब  मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊंगा  शोहरतें, जिनकी वजह से दोस्त दुश्मन हो गए  सब यहीं रह जाएंगी मैं साथ क्या ले जाऊंगा 

(6) गिरेबान चेक करना क्या है सीना और मुश्किल है, हर एक पल मुस्कुराकर अश्क पीना और मुश्किल है, हमारी बदनसीबी ने हमें बस इतना सिखाया है, किसी के इश्क़ में मरने से जीना और मुश्किल है.

(7) सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता खुशी के घर में भी बोलों कभी क्या गम नहीं होता फ़क़त इक आदमी के वास्तें जग छोड़ने वालो फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता

  • कुमार विश्वास मोटिवेशनल शायरी

 

(8) कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है मगर धरती की बेचैनी, को बस बादल समझता है मैं तुझसे दूर कैसा हू, तू मुझसे दूर कैसी है ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है

(9) नज़र में शोखिया लब पर मुहब्बत का तराना है मेरी उम्मीद की जद़ में अभी सारा जमाना है कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझकों सिकन्दर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ जाना है।

(10) जब  बासी  फीकी  धुप  समेटें , दिन  जल्दी  ढल  जाता  है , जब  सूरज  का  लश्कर , छत  से  गलियों  में  देर  से  जाता  है ,

(11) जब  बेमन  से  खाना  खाने  पर , माँ   गुस्सा  हो  जाती  है , जब  लाख  मन  करने  पर  भी , पारो  पढने  आ  जाती  है ,

(12) दिल के तमाम ज़ख़्म तिरी हाँ से भर गए जितने कठिन थे रास्ते वो सब गुज़र गए

(13) कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ,मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है .मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है, ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है.

(14) मोहब्बत एक अहसासों की, पावन सी कहानी है, कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है, यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं, जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है

(15) युद्ध में गुणगान उसका होता है जो स्वंय के दम पर युद्ध लड़ता है, इसमें फर्क नहीं पड़ता की वह हारता है या जीतता

(16) उम्मीदें हमेशा बड़ी रखनी चाहिए, पर उनमे लालच नहीं होना चाहिए

(17) ख़ुशियों के बेदर्द लुटेरो ग़म बोले तो क्या होगा ख़ामोशी से डरने वालो 'हम' बोले तो क्या होगा

(18) एक दो दिन मे वो इकरार कहाँ आएगा, हर सुबह एक ही अखबार कहाँ आएगा , आज जो बांधा है इन में तो बहल जायेंगे, रोज इन बाहों का त्योहार कहाँ आएगा



  • कुमार विश्वास की गजल शायरी

 

(19) मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा. मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इलज़ाम आएगा. हर एक धड़कन में जब तुम हो, तो फिर अपराध क्या मेरा, अगर राधा पुकारेंगी, तो घनश्याम आएगा.

(20) भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा, हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा, अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का, मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा

(21) नशा है मुझे इस तिरंगे की आन में बसा है मेरा दिल इस धरती की जान में शक हो कोई मन में तो देख लेना कल भी थे कल भी रहेंगे इसी हिंदुस्तान में

(22) ना पाने की खुशी है कुछ,ना खोने का ही कुछ गम है, ये दौलत और शौहरत सिर्फ कुछ जख्मों का मरहम है ! अजब सी कशमकश है रोज जीने ,रोज मरने में, मुक्कमल जिंदगी तो है,मगर पूरी से कुछ कम है

(23) स्वंय से दूर हो तुम भी स्वंय से दूर है  हम भी बहुत मशहूर हो तुम भी बहुत मशहूर है  हम भी बड़े मगरूर हो तुम भी बड़े मगरूर है  हम भी अतः मजबूर हो तुम भी अतः मजबूर है हम भी।। 

(24) पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है, अंधेरा किसको कहते है ये बस जुगनू समझता है, हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है, मुहब्बत में नुमाइश को अदाएं तु समझता है

(25) जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है, जो शीशे से पत्थर तोड़े,  उसका नाम मोहब्बत है, कतरा कतरा सागर तक तो, जाती है हर उमर मगर , बहता दरिया वापस मोड़े,  उसका नाम मोहब्बत है

(26) जवानी में कई गजले अधूरी छूट जाती है , कई ख्वाइश तोह दिल ही दिल में पूरी टूट जाती है … जुदाई में तोह में उससे मुकम्मल बात करता हु , मुलाकातों में सब बाते अधूरी छूट जाती है 

(27) इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, में भी हूँ और तू भी है आसमान से गिरा परिंदा, में भी हूँ और तू भी है छुट गयी रस्ते में, जीने मरने की सारी कसमें अपने-अपने हाल में जिंदा, में भी हूँ और तू भी है। 

(28) जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर तब कहती हो प्यार हुआ है,क्या अहसान तुम्हारा है

(29) जख्म  भर जायेगे तुम मिलो तो सही , जख्म भर जायेगे तुम मिलो तो सही , रास्ते में खड़े दो अधूरे सपन .. एक घर जाएगे तुम मिलो तो सही

(30) हर "मजहब" से सीखा हमने , पहले #देश का नारा … मत बांटो इसे #एकही रहने दो , प्यारा_हिंदुस्तान_हमारा प्यार_हिंदुस्तान_हमारा

(31) जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है, तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है, और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है !

(32) ये दिल बर्बाद करके सो में क्यों आबाद रहते हो कोई कल कह रहा था तुम अल्लाहाबाद रहते हो ये कैसी शोहरतें मुझको अता कर दी मेरे मौला मैं सभ कुछ भूल जाता हूँ मगर तुम याद रहते हो

(33) बात ऊँची थी मगर बात जरा कम आंकी, उसने जज्बात की औकात जरा कम आंकी, वो फरिश्ता कह कर मुझे जलील करता रहा, मै इंसान हूँ, मेरी जात जरा कम आंकी।

(34) जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है, जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है, कतरा कतरा सागर तक तो,जाती है हर उमर मगर, बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है

(35) हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है और उदासी के पंजों से हँसने का सुख छीना है मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते है पल पल भीतर भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है।

(36) हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है, यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है ! वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है, तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से जमाना है

(37) हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है खुदा जाने गुरुर ए हुस्न में मदहोश कितना है किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है

(38) अमावस की काली रातों में, जब दिल का दरवाजा खुलता है , जब दर्द की प्याली रातों में, गम आंसूं के संग होते हैं

(39) जिस्म का आखिरी मेहमान बना बैठा हूँ एक उम्मीद का उन्वान बना बैठा हूँ वो कहाँ है ये हवाओं को भी मालूम है मगर एक बस में हूँ जो अंजान बना बैठा हूँ।

(40) तिरंगा कोई वस्त्र नहीं भारत की शान है हर एक हिंदुस्तानी का यह हिंदुस्तान है यहाँ की गंगा यही का हिमालय चीख रहा है नाम मात्र नहीं ये हमारे दिलो का स्वाभिमान है
(41)
घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे देखना ये है कि मंज़िल पे कौन पहुँचेगा मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा।
(42)
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ
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